Jun 23, 2008

Government Employee? Huh..

I have some problems with this post, I am unable to convert some of the words to Hindi, but I can't wait too long to publish this post, so sorry for inconvenience & forgive me for jumbling words, I hope you dont' mind it.

One more interesting conversation in train with Mr. Amit.

Amit one of my friend from our train group, working with Tax consultant & always cursing Govt. Employees. One day, I thought enough is enough, I being working in Public Sector, decided to confront him.

Our discussion begins:-

खु- क्या बे अमित, हमेशा गवर्नमेंट एम्प्लोयीसको गाली देते रहेता हैं?

अ - तो क्या, साले मुफ्त का पगार खाते हैं। हम लोग इतना टैक्स भरते हैं और तुम लोग सारे पैसे खा जाते हों।

खु- अमित, तुझे मालूम हैं क्या, गवर्नमेंट के वजह सेही इतनी सारी नौकरिया चल रहीं हैं और उसके चलते लोगों का घर चल रहा हैं। अगर सरकार यह बंद कर दे तो बेकारी कितनी बढ़ जायेगी।

अ - ऐसा कुछ नहीं होंगा। साले मुफ्त का पगार भी खाते हैं और ऊपर से रिश्वत अलग।

खु - रिश्वत लेके भी काम तो होता हैं प्राइवेट सेक्टर मैं तो साला कुछ भी पता ही नहीं चलता। अपने से दाम बढाते हैं और पूछने पे कुछ जवाब नहीं मिलता

अ - तो क्या सरकारी काम सब ठीक ठाक होता हैं क्या।

खु - अपनी सरकार सब को एक जैसा रखती हैं, प्राइवेट मैं कभी कोई handicapped को काम देता हैं क्या? सरकारी नौकरी मैं तो उनके लिए reservation होता हैं
अ - उस परभीं चाल बाजी होती हैं , नकली certificate से काम चलता हैं।

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अ - अच्छा, मुझे यह बता, तेरे घर मैं कामवाली आती हैं क्या,
खु - नहीं,
अ - ok, तुम्हारी tailoring shop हैं ना, उस में कारीगर काम करते हैं ना,
खु- हाँ,

अ - अगर वे , काम नहीं करें, या कम काम करें तो भी क्या तुम लोग उसको पुरा पगार देते हों? क्या system क्या हैं तुम्हारे यहाँ पगार देने की,
खु - वैसे तो मेरा भाई दुकान संभालता हैं, उस में कारीगर जो भी कपड़े सीता हैं उसका एक tag रखता हैं और week end मैं उसका हिसाब होता हैं।

अ- अगर वोह छुट्टी करता हैं या कुछ और कारण से काम कम करता हैं या फिर दुकान में ही काम कम हो तो तुम लोग उसको पुरा वीक का पगार देते हो

खु - नहीं, उसने जो काम किया उतना ही उसका पगार बनता हैं।

अ - तुम लोग साले सरकारी एम्प्लोयीस का हिसाब क्या ऐसे होता हैं। सब जगह जितना काम उतना दाम मिलता हैं , खाली तुम्हारे यहाँ ही यह सब फाल्तुगिरी चलती हैं। मेरी तुमसे दुश्मनी नहीं हैं, लेकिन जब हम लोग का हक़ का पैसा निकम्मे और फालतू लोगों को पगार मैं खर्च होता हैं तो बुरा लगता हैं। हम लोग दिन रात महेनत करते हैं तब जाके हाथ मैं कुच्छ आता हैं और तुम लोग बिना महेनत किए ऐश करते हों ।
काम करो हक़ से पैसा लो।

खु - ( मैं एकदम चुप हो गया),

मेरे पास कोई जवाब नहीं था । वोह सही था, मुझे भी लगा की मेरा भाई किसीको बिना काम पैसे नहीं देता तो फिर सरकार क्यों इतने लोगों को ऐसे ही पालती हैं। हमारे ही कंपनी मैं कितने सारे लोग हैं जो कुछ काम नहीं करते फिर भी मुझसे ज्यादा पगार लेते हैं।
उसी वक्त से मैंने सोचा, दुसरे लोग जो चाहे करें पर मैं अपना काम पुरी ईमानदारी, महेनत और लगन से करूँगा, जितनी पगार पाता हूँ, कोशिश करूंगा की उतना या उससे ज्यादा मैं contribute करूँ ।
Thanks अमित, फॉर opening my eyes,

Khushal
25/06/08